एक शांत कमरा, ढेर सारी किताबें कई लोग फिर भी सन्नाटा। जी हां यह माहौल हुआ करता था, पुस्तकालयों का जहां किताबों से भरे हुए इस पुस्तकालय में ज्ञान अर्जन के लिए सिर्फ युवा ही नहीं पहुंचते थे, बल्कि तमाम पुस्तक प्रेमी भी यहां प्रतिदिन जाते थे। पुस्तकालय की कहानियां और किताबों से प्यार, ये गुजरे जमाने का किस्सा बन गया है। पुरानी पीढ़ियां किताबों को अपना दोस्त समझती थी। बुजुर्गों की मानें तो पहले के लोग दिन के कई घंटे पुस्तकालय में गुजार देते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी किताबों से बहुत दूर हो चुकी है। इस पीढ़ी के कई युवा ऐसे भी हैं, जिन्होंने पुस्तकालय का दरवाजा तक नहीं देखा।
यह पीढ़ी सोशल नेटवर्किंग साइटों को दोस्त ही नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी समझने लगी है। इसका नतीजा है कि स्कूली बच्चे सिर्फ अपने पाठ्यक्रम की किताबें ही पढ़ रहे हैं। साहित्य की दुनिया से बच्चे और अभिभावक दोनों ही दूर हो रहे है। कोरोना काल में रही सही कसर ऑनलाइन क्लास ने पूरी कर दी। दो वर्ष तक किताबों की जगह बच्चों की पढ़ाई मोबाइल के माध्यम से पूरी हुई। ऐसे में बच्चों की किताबों से दूरी और भी बढ़ गई। जिस तरह से मोबाइल और लैपटॉप का प्रयोग बढ़ा है, उससे भी पुस्तकों के प्रति युवाओं का रुझान कम हुआ है। अब मोबाइल ही युवाओं का एक अच्छा दोस्त बन गया है।
पुस्तकें युवाओं की सबसी अच्छी मित्र होती हैं। इस तरह एक व्यक्ति अपने मित्र के लिए खड़ा रहता है, वैसे ही किताबें भी विषम परिस्थितियों में मनुष्य की सहायक होती हैं। इस तरह जीने के लिए आक्सीजन, पानी, भोजन की आवश्यकता होती है। उसी तरह मानसिक विकास के लिए किताबी ज्ञान की आवश्यकता होती है। एक समय था जब शहर के नदरई गेट स्थित मेहता पुस्तकालय में जब प्रतिदिन 100 से अधिक लोग किताबें पढ़ने पहुंचते थे।